अब घर बैठकर गुस्सा करना नहीं मन को सुहाता
काश में भी हथियार उठाकर सीमा पर लड़ पता
संदेह नहीं सेना पर हमारी, किसी फौलादों से कम नहीं
लेकिन स्वयं के हाथों से,
दुश्मनों के छक्के ना छुड़ा पाने का रहता हैं गम कहीं
तिल तिल रोने वाला हैं अब बेरहम दुश्मन हमारा
उल्टी गिनती शुरू हो चुकी,
खून के आंसू रोएगा, नामो निशान मिटेगा तुम्हारा
चुनौती जो आज मिली हैं उनको तो भारी पड़नी हैं,
सच कहता हूं सुन लो मुझसे,
इस कदर हाल होना के वहां पड़ी लशे भी सड़नी हैं
वो देशभक्ति ही क्या जो बलिदान को ना उकसा पाए
स्वाभिमान गर हो नस में भरा तो,
कदम बढ़ चले स्वयं युद्ध को, वीरगति प्राप्त हो जाए
अब घर बैठकर गुस्सा करना नहीं मन को सुहाता
काश में भी हथियार उठाकर सीमा पर लड़ पता
वक्त आने दे ए आसमा, हम बतला देंगे तुझे,
हम अभी से क्या कहे क्या हमारे दिल में हैं…
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं,
देखना हैं जोर कितना बाजुएं कातिल में हैं।
~ संजय त्रिवेदी