Monthly Archives: September 2019

कड़े वाहन नियमों पर इतना हो हल्ला क्यों!

केंद्र सरकार द्वारा पारित वाहन नियमों के उलंघन पर प्रस्तावित दंड के बढ़ाए जाने पर जहां मोदी विरोधी तंत्र ने इसके विरोध पर दुष्प्रचार के लिए कमर कस ली हैं वहीं कुछ स्वार्थी वाहन धारक निजी हित के लिए इसका विरोध करते दिखाई दे रहे। यहां तक तो फिर भी ठीक हैं किन्तु गंभीर प्रश्न चिन्ह उन राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रीयों ने लगाया जहां पर बीजेपी की ही सरकार हैं। इनमें सर्वाधिक चौंकाने वाला नाम गुजरात का हैं क्योंकि वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री व ग्रहमंत्री दोनों गुजरात से ही हैं।

लेकिन इस विषय पर अलग दृष्टिकोण जो पूर्णतया नजर अंदाज किया जा रहा वह हैं राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण का सम्मान, आमजन की सुरक्षा व जनमानस में नियमों के प्रति जिम्मेदारी का आचरण।

नए नियम कड़े अवश्य हैं किन्तु इसके दूरगामी परिणाम वास्तव में नए भारत की तस्वीर बदलने की क्षमता रखते हैं, जानिए इनके बारे में…

१) नए नियम कड़े होने के चलते वाहन धारकों को नियमानुसार वाहन उपयोग के लिए बाध्य करते हैं इस तरह जहां एक ओर दुर्घटनाओं में कमी की संभावना अधिक होगी वहीं दूसरी ओर उनके नियमित वाहन जांच से पर्यावरण संरक्षण में लाभकारी बनेंगे।

२) आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष भारत में पांच लाख लोग सड़क दुघर्टना के शिकार बनते हैं अत: यदि इन दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्ति व उनके परिजनों को सम्मलीत करले तो लगभग दस से बारह लाख लोग प्रत्येक वर्ष सड़क दुघर्टनाओं से प्रभावित होते हैं। एसी दुघर्टनाओं में २० से ३० प्रतिशत की गिरावट लाने के लिए यह कानुन कारगर सिद्ध हो सकता हैं व साथ ही गैरजिम्मेदार वाहन चालकों पर कड़ी कार्रवाई से न्याय संभव हो सकेगा।

३) बढ़ते ट्रैफिक जाम पर अंकुश लगाने के लिए भी यह कानुन उपयोगी होगा जिसके चलते वाहन धारक सोच समझ कर ही वाहन आवश्यकता अनुसार सड़क पर उतारना चाहेंगे। इसके विकल्प में सरकारी व पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा। इससे प्रदुषण में कमी व संसाधनो का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित होगा।

३) इन सबके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बदलाव इन कठोर नियमों से नजर आयेगा वह होगा आम जनमानस में कानुनों के प्रति जिम्मेदारी व उसके सम्मान का भाव जागृत होना। आज सर्वाधिक कानुनों की यदि अनदेखी किसी क्षेत्र में मिलती हैं तो वह वाहन धारकों व चालकों से जुड़े हुए क्षेत्र की है। यदि इस क्षेत्र में कानुनों के प्रति सम्मान का भाव जागृत हो गया तो दुरगामी परिणामों से समाज पर इसका बेहद सकारात्मक असर देखने को मिल सकता हैं।

उपरोक्त सभी सकारात्मक बदलाव नए भारत के सदृढ़ संकल्प में अहम भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन फिर भी हमें इन नियमों के विरोध में समाज के एक बुद्धजीवी वर्ग की आवाज इतनी तेजी से सुनाई जा रही आमजन भ्रमित हो जाए। एक नजर एसे तर्को पर भी…

१) किसी का तर्क हैं कि इससे ट्राफिक पुलिस वाहन चालकों को अत्यधिक परेशान करेंगे व भ्रष्टाचार बढ़ेगा लेकिन इस तर्क के विषय में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह यह परेशानी तो इन नियमों के लागू होने के पहले भी इसी तरह बनी हुई हैं हालांकि इसमें ई-चालान जैसी पहल से काफी सुधार भी हमें देखने को मिला हैं। और आने वाले दिनों में अत्यधिक सुधार के आसार दिखाई दे रहे। सरकारी तंत्र पर भरोसा रखना ही होगा।

२) की बुद्धिमानी तर्क देते हैं कि अन्य सुविधा जैसे कि अच्छे रोड़, पार्किंग जैसी जरूरतों को जब तक पुरा नहीं करती सरकार तब तक एसे नियम ज्यादती होगी। यह सही हैं कि यातायात से जुड़ी सुविधा सरकार को उपलब्ध करवाने के लिए दबाव डाला जाना चाहिए। लेकिन सुविधा व कानून दो अलग-अलग विषय हैं जिन्हें जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।

एक साधारण सी बात हैं कि यदि दो पहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट का कानून ना हो तो कितने लोग सुरक्षा हेतु हेलमेट पहन कर निकलेंगे? इस तरह अन्य नियमों का हाल भी एसा ही होगा। अतः कानून व कड़े प्रावधान होना पहली अनिवार्यता हैं। यह वाहन चालकों के भी हित में हैं, आमजन की सुरक्षा के भी हित में हैं व राष्ट्र के हित में भी हैं।

जय हिन्द, जय भारत

कड़े वाहन नियमों पर इतना हो हल्ला क्यों!

केंद्र सरकार द्वारा पारित वाहन नियमों के उलंघन पर प्रस्तावित दंड के बढ़ाए जाने पर जहां मोदी विरोधी तंत्र ने इसके विरोध पर दुष्प्रचार के लिए कमर कस ली हैं वहीं कुछ स्वार्थी वाहन धारक निजी हित के लिए इसका विरोध करते दिखाई दे रहे। यहां तक तो फिर भी ठीक हैं किन्तु गंभीर प्रश्न चिन्ह उन राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रीयों ने लगाया जहां पर बीजेपी की ही सरकार हैं। इनमें सर्वाधिक चौंकाने वाला नाम गुजरात का हैं क्योंकि वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री व ग्रहमंत्री दोनों गुजरात से ही हैं।

लेकिन इस विषय पर अलग दृष्टिकोण जो पूर्णतया नजर अंदाज किया जा रहा वह हैं राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण का सम्मान, आमजन की सुरक्षा व जनमानस में नियमों के प्रति जिम्मेदारी का आचरण।

नए नियम कड़े अवश्य हैं किन्तु इसके दूरगामी परिणाम वास्तव में नए भारत की तस्वीर बदलने की क्षमता रखते हैं, जानिए इनके बारे में…

१) नए नियम कड़े होने के चलते वाहन धारकों को नियमानुसार वाहन उपयोग के लिए बाध्य करते हैं इस तरह जहां एक ओर दुर्घटनाओं में कमी की संभावना अधिक होगी वहीं दूसरी ओर उनके नियमित वाहन जांच से पर्यावरण संरक्षण में लाभकारी बनेंगे।

२) आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष भारत में पांच लाख लोग सड़क दुघर्टना के शिकार बनते हैं अत: यदि इन दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्ति व उनके परिजनों को सम्मलीत करले तो लगभग दस से बारह लाख लोग प्रत्येक वर्ष सड़क दुघर्टनाओं से प्रभावित होते हैं। एसी दुघर्टनाओं में २० से ३० प्रतिशत की गिरावट लाने के लिए यह कानुन कारगर सिद्ध हो सकता हैं व साथ ही गैरजिम्मेदार वाहन चालकों पर कड़ी कार्रवाई से न्याय संभव हो सकेगा।

३) बढ़ते ट्रैफिक जाम पर अंकुश लगाने के लिए भी यह कानुन उपयोगी होगा जिसके चलते वाहन धारक सोच समझ कर ही वाहन आवश्यकता अनुसार सड़क पर उतारना चाहेंगे। इसके विकल्प में सरकारी व पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा। इससे प्रदुषण में कमी व संसाधनो का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित होगा।

३) इन सबके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बदलाव इन कठोर नियमों से नजर आयेगा वह होगा आम जनमानस में कानुनों के प्रति जिम्मेदारी व उसके सम्मान का भाव जागृत होना। आज सर्वाधिक कानुनों की यदि अनदेखी किसी क्षेत्र में मिलती हैं तो वह वाहन धारकों व चालकों से जुड़े हुए क्षेत्र की है। यदि इस क्षेत्र में कानुनों के प्रति सम्मान का भाव जागृत हो गया तो दुरगामी परिणामों से समाज पर इसका बेहद सकारात्मक असर देखने को मिल सकता हैं।

उपरोक्त सभी सकारात्मक बदलाव नए भारत के सदृढ़ संकल्प में अहम भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन फिर भी हमें इन नियमों के विरोध में समाज के एक बुद्धजीवी वर्ग की आवाज इतनी तेजी से सुनाई जा रही आमजन भ्रमित हो जाए। एक नजर एसे तर्को पर भी…

१) किसी का तर्क हैं कि इससे ट्राफिक पुलिस वाहन चालकों को अत्यधिक परेशान करेंगे व भ्रष्टाचार बढ़ेगा लेकिन इस तर्क के विषय में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह यह परेशानी तो इन नियमों के लागू होने के पहले भी इसी तरह बनी हुई हैं हालांकि इसमें ई-चालान जैसी पहल से काफी सुधार भी हमें देखने को मिला हैं। और आने वाले दिनों में अत्यधिक सुधार के आसार दिखाई दे रहे। सरकारी तंत्र पर भरोसा रखना ही होगा।

२) की बुद्धिमानी तर्क देते हैं कि अन्य सुविधा जैसे कि अच्छे रोड़, पार्किंग जैसी जरूरतों को जब तक पुरा नहीं करती सरकार तब तक एसे नियम ज्यादती होगी। यह सही हैं कि यातायात से जुड़ी सुविधा सरकार को उपलब्ध करवाने के लिए दबाव डाला जाना चाहिए। लेकिन सुविधा व कानून दो अलग-अलग विषय हैं जिन्हें जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।

एक साधारण सी बात हैं कि यदि दो पहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट का कानून ना हो तो कितने लोग सुरक्षा हेतु हेलमेट पहन कर निकलेंगे? इस तरह अन्य नियमों का हाल भी एसा ही होगा। अतः कानून व कड़े प्रावधान होना पहली अनिवार्यता हैं। यह वाहन चालकों के भी हित में हैं, आमजन की सुरक्षा के भी हित में हैं व राष्ट्र के हित में भी हैं।

जय हिन्द, जय भारत