आधुनिक शिक्षा का प्राचीन ज्ञान के प्रति उपेक्षा: एक तीखी टिप्पणी

प्रगति की अथक खोज में, आधुनिक शिक्षा अक्सर सदियों से संस्कृति के ऐतिहासिक ज्ञान के साथ टकरा जाती है। पौराणिक ज्ञान से जहाँ विश्व कल्याण व प्रकृति से जुड़ने का महत्व सामने आता है, वहीँ आधुनिक शिक्षा मात्र साक्ष्य आधारित विश्वासों पर सिमित रह गई हैं। आज किसी भी विद्यार्थी को पौराणिक शिक्षाओं के आधार पर समझाना असंभव सा हो गया हैं यूंकि आज का विद्यार्थी विषय को छोड़ साक्ष्य पर ही लटक जाता हैं। विषय को गहराई से समझने की क्षमता विद्यार्थियों में लगभग ओझल सी हो रही। पौराणिक ज्ञान का तो आधार ही ईश्वर से प्रारम्भ होता हैं किन्तु आधुनिक शिक्षा सर्वप्रथम ईश्वर स्वरुप पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देती हैं और यह मुलभुत अंतर ही विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास पर अंकुश लगा देता हैं।

लेकिन, वो कहते हैं न की सत्यता को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती, अब आंशिक रूप से ही सही किन्तु आधुनिक शिक्षा का झुकाव पुनः भारतीय वैदिक शिक्षा की और झुकता नजर आ रहा। आइए एक दृष्टी में समझते हैं की कि आधुनिक विज्ञान कैसे रुचिपूर्ण रूप से प्राचीन प्रथाओं की मान्यता को अब स्वीकार कर रहा है।

1. योग और आयुर्वेद का पुनर्आविष्कार

दशकों तक, योग और आयुर्वेद के अभ्यास को मुख्यधारा विज्ञान ने नकारा या केवल अंधविश्वास माना। हालांकि, मानसिक-शारीरिक संबंध में अध्ययन के साथ, योग के चिकित्सात्मक लाभ और आयुर्वेद की समग्र उपचार दृष्टि को मान्यता मिल रही है। तनाव को कम करने से लेकर शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने तक, प्रमाण अब उसे समर्थन करता है जो प्राचीन ऋषियों ने लंबे समय से समझा है।

2. परमात्मा का अस्तित्व

आधुनिक विज्ञान, अपने प्रमाण-आधारित दृष्टिकोण के साथ, धर्म और आध्यात्मिकता के विषयों से दूर रहता है। एक उच्च शक्ति या देवता का अवगमन वैज्ञानिक समझ के साथ असंगत माना गया था। फिर भी, हम ब्रह्मांड के रहस्यों को अन्वेषण करते हैं, कुछ अपरिपक्व ज्ञान का अस्तित्व स्पष्ट होता है। चाहे उसे भगवान, ऊर्जा, या ब्रह्मांडीय बल कहा जाए, कुछ अपने आप से बड़ा जानने की मान्यता वैज्ञानिक चर्चा में बढ़ रही है।

3. रस्में और परंपराओं को ग्रहण करना

देवताओं को आरती चढ़ाने या प्रार्थना करने जैसी रस्में कभी केवल सांस्कृतिक अभ्यास के रूप में नकारा गया था या वैज्ञानिक महत्वहीन माना गया था। हालांकि, इन रस्मों का महत्व समुदाय, कृतज्ञता, और भले के अनुभव को बढ़ावा देने में है। संकल्प की शक्ति, सावधानी, और सामूहिक ऊर्जा, जो पहले हंसा जाता था, अब वैज्ञानिक अन्वेषण और पुष्टि के माध्यम से अध्ययन किया और स्वीकृत किया जा रहा है।

4. प्राचीन ज्ञान की पुनःखोज

दुनिया भर की प्राचीन संस्कृतियों में प्रकृति के साथ साझा जीने का गहन ज्ञान है। वातावरणीय संकटों का सामना करने में, हमें पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी रक्षण के लिए प्राचीन ज्ञान की महत्वपूर्णता को अधिक समझने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

हमारी प्रगति की अदालत में, हमें पूर्वजों के ज्ञान को त्याग नहीं देना चाहिए। आधुनिक शिक्षा को विभिन्न दृष्टिकोणों को ग्रहण करने और प्राचीन ज्ञान को वैज्ञानिक समझ के साथ मिलाने के लिए विकसित होना चाहिए। इसी प्रकार, हम सभी समस्याओं का सामना कर सकते हैं और अपने समय के चुनौतियों का सामना करने के लिए मानवता के संगठित ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं, जो खुद के साथ, एक-दूसरे के साथ, और प्राकृतिक दुनिया के साथ एक और मिलाने वाले अस्तित्व के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

मुहूर्त प्रथा का विरोध क्यों

*फिर वही वामपंथी एजेंडा….!!!*

_*आपने भी रक्षाबंधन पर भद्रा न पालने के संदेश देखें होंगे।*_

खैर, भद्रा पालना अथवा न पालना, यह ज्योतिष-शास्त्र विशेषज्ञ विस्तार से बता सकता हैं। किंतु “विशेष” त्योहार मनाते समय या कोई भी शुभ कार्य आरंभ करते समय मुहूर्त देखने का विधान शास्त्रों में प्रमाणित रूप से स्पष्ट किया गया हैं।

आज मुहूर्त को मानने की प्रथा की अवहेलना करना ठिक वैसे ही हैं जैसे कभी हमने आयुर्वेद व योग को नकार  दिया व तत्पश्चात् विदेशीयों ने इस पर अपना सिक्का जमाने की भरपुर षड्यंत्र किया। वह अलग बात हैं कि भारत समय पर जागृत हो गया।

ध्यान रहे कि, श्री राम जी ने भी मुहर्त देखकर लंका विजय के लिए सेना रवाना की थी।

ग्रह नक्षत्र और मुहर्त… सनातन की ही उपलब्धियां हैं यदि हम ही नकार देंगे तो कोन विस्वास करेगा। और यह भी संभव हैं कि पश्चिमी देश इन शास्त्रों को किसी और रूप में ला कर अपना सिक्का जमाने लगे।

अपनी संस्कृति, अपनी धरोहर 

#राष्ट्र_रक्षक

अब दिखेगा रुपे कार्ड का जलवा

यह कोई मामूली खबर नहीं, ध्यान से पढ़े।

इस पेमेंट सर्विस पोर्टेबल निति से विदेशी मास्टर और वीजा जो अब तक हमें क्रेडिट और डेब्यू कार्ड के पीछे छुप कर गुलाम बनाये हुई थी अब हम भारतियों को रूपए सर्विस अपना कर आजादी मिलेगी। गौर करे, देश में एक देशभक्त सर्कार ही ऐसे फैसले ४करने में सक्षम हो सकती हैं अन्यथा ये मास्टर व वीजा जैसे विदेशी माफिया किसी भी कीमत पर ऐसे फैसले लेने वाली सरकार को खरीद लेते थे।

इसका असर:
1) भारत की रूपए प्रणाली और भी प्रखर रूप से उभरेगी व डालर की ताकत कमजोर होगी।
2) भारत भुगतान सर्विस में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होगा।
3) मास्टर – वीजा को सर्विस चार्ज के रूप में विदेश जाने वाले करोडो रूपए की बचत।

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उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार हैं फिर भी हिन्दू महापंचायत रोक रही हैं!

उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार हैं फिर भी हिन्दू महापंचायत रोक रही हैं!

ये प्रश्न अज्ज-कल शोशियल मीडिया पर हर दूसरा कट्टर-खट्टर हिन्दू पूंछता हुवा मिल जाएग। और माहौल बनाएगा की बीजेपी भी सेक्युलर हैं, मोदी हिन्दुओ के लिए कुछ नहीं कर सकता। जैसे की यह प्रश्न उठानेवालेने हिन्दुओ का ठेका पूरा अपने सर उठाये बैठा हैं!!!

ये कट्टर-खट्टर सिर्फ शोशियल मिडिया पर एक पोस्ट कर के फिर चद्दर तान के सो जाते हैं और गौर कीजियेगा इनमे से कई तो मोदी विरोधिये के पेड एजेंट हैं। जो हिन्दुओ को मोदी के विरोध में भड़काने के लिए भाड़े के टट्टू बनाये गए है।

रही बात उपरोक्त प्रश्न की तो अब सुनिए जवाब…
१) जब से २०२४ का माहौल बना हैं तभी से भारत विरोधी विदेशी मिडिया इस झूठ को फ़ैलाने में लगा हैं की मोदी राज में अलप संखयक सुरक्षित नहीं
२) हमरे पैदाइशी युवराज राहुल गधे ने भी अमेरिका जा कर इसी मुद्दे पर झूठ फैलाया और कहा की “डर का माहौल हैं
३) ये सारे विदेशी भेड़िये इसी तक में हैं की कब मुस्लिमो पर अत्याचार वाला माहौल मिले
४) उत्तराखंड में हिन्दुओ का गुस्सा बिलकुल नया हैं क्या ऐसा प्रतिरोध आपने पहले कभी देखा ? वहां जो हुवा उससे बड़े-बड़े काण्ड हमें हिन्दू लड़कियों पर देख लिए हैं लेकिन यह पहली बार हैं जब एक जमात वाले भागते नजर आये। यह माहौल बनावटी भी हो सकता है। और वो इसलिए क्यूंक विदेशी भेड़िये ऐसा माहौल छह रहे है।
५) ध्यान रहे ये शांतिप्रिय दंगे करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं लेकिन आज हमें भागते इसलिए नजर आ रहे क्यूंकि इन्हे डर का माहौल किसी भी कीमत पर बनाना हैं
६) और इसी षड़यंत्र को रकने का काम बीजेपी सरकार कर रही हैं

एक बात गांठ बांध कर रख ले, मोदी सरकार ऐसा कभी न तो स्वयं करेगी और न होने देगी जहाँ भीड़ तंत्र की चले। इसमें भी जमात वालों को डिस्काउंट दे-दे गी क्यूंकि इससे उनकी कट्टरता जग जाहिर होती हैं और वही मौका होता हैं क़ानूनी रूप से कठोर नियम बनाने का।

आज वक्त हिन्दुओं को आक्रोशित होने का नहीं बल्कि संगठित होने का और मानसिक तौर पे अगले चुनाव के लिए हर घर से हिन्दू निकल कर राष्ट हिट में वोट करे इसमें योगदान नरने का। अवश्य मोदी 3.0 – हिन्दुराष्ट्र के लिए मुख्य व बेहद संघर्षपूर्ण चुनौती है।

हिन्दू कथा वाचक एक कथा का १० लाख तक लेते हैं!

एक मेसेज बहुत ही वाइरल हो रहा की हिन्दू कथा वाचक एक कथा का १० लाख तक लेते हैं और हमें सिखाते हैं सब माया हैं!!

भाई कैसी भी कथा, पूजा अथवा हवं करोगे तो क्या खर्च नहीं होगा?
कथा कराने में खर्च तो होना ही हैं… सिर्फ महंगे कथावाचक का चलन बेईमानी।

लेकिन इन कथा वाचको में कई है जो वाकई धर्मजागरण भी कर रहे, खर्च करने वाला अपनी भावना से कर रहा तो सत्संग में जाने वाले को क्यों भ्रमित करेऐसी पोस्ट हिंदु संतो के प्रति अनादर का भाव प्रकट करती हैं। ठिक वैसे ही जैसे वामपंथियों ने मंदिर को भी व्यवसाय बता-बता कर हिंदुओ को मंदिर जाने से ही विमुख कर दिया। जिसे ये वामपंथी business बताते रहे वह “सनातन economic” हैं जिसमें दान-धर्म भी हैं और फुल, नारियल प्रसाद सब का व्यवसाय हैं जिसमें गरीब भी जुड़े हुए हैं। यह आप पर निर्भर है कि आप दान किसे दे रहे, कोई भी मंदिर जबरन दान नहीं लेता। इसलिए अगर यह आपको व्यापार भी लगे तो नुकसान किसी का नहीं हर भक्त धर्म से और बंधेगा ही।

हाल ही में काशी, उज्जैन, अयोध्या जैसे तीर्थ स्थलों का वर्तमान नवीनीकरण इस सनातन इकोनोमिक को मजबूत करने का ही प्रयत्न हैं। याद रखिये, यदि भारत से मंदिर व संतो का अर्थशास्त्र जिसे आप business कहते हैं समाप्त हो गया तो भारत भी नहीं बच सकत।

वामपंथी हमेशा गलत थे और गलत ही रहेंगे, इनके बहकावे में आकर स्वयं मुर्ख न बने 😊

कार्डिओलॉजिस्ट डा गौरव गाँधी को हार्ट अटैक

जानेमाने कार्डिओलॉजिस्ट डा गौरव गाँधी जिनका स्वयं हार्ट अटैक से निधन

ऐसा गजब सिर्फ आधुनिक चिकित्सको के साथ ही मिल सकता हैं।
किसी भी योग व आयुर्वेद से जुड़े अनुभवी के साथ कभी सुना हैं !

क्यूंकि आधुनिक चिकिता पद्धति मात्र बीमार होने पश्चात ही उपयोगी होती हैं व उपचार सिखाती हैं किन्तु सनातन की आयुर्वेद व योग पद्धति उपचार सहित हम निरोगी जीवन कैसे जिए यह सिखाती है। इसलिए आयुर्वेद अपना कर अपन जीवन निरोगी बनाय।

एक कदम आयुर्वेद व योग की और, जीवन सनातन की और।

#YogaDay

#YogDiwas2023 🚩

स्वदेशी ब्रांड अमुल पर षड्यंत्र Information warfare का ज्वलंत उदाहरण

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो बहुत ही तेजी से फैलाया गया जिसमें अमूल की लस्सी के पैक काट काट कर दिखाया गया था कि अमूल की लस्सी के पेक में फंगस मिल रहे थे। वीडियो में लगभग तीन से चार पैक काट कर के दिखाया गया जिसमें सभी में फंगस निकले। गौर करने वाली बात यह है इस वीडियो में ही यह भी स्पष्ट दिख रहा था कि जहां से स्ट्रा पाइप लगाया जाता है वहां पर पहले से ही छेद था। मतलब की ऐसा वीडियो बनाने के लिए पहले इन पर छेद किए गए फिर इन में फंगस जमने दिया गया और फिर वीडियो बनाया गया।

प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया जिसका उत्तर बहुत ही सरल है कि भारत की स्वदेशी ब्रांड अमूल के खिलाफ षड्यंत्र रचा जाए जैसा कि वीडियो में भी स्पष्ट नजर आ रहा है। अब यह षड्यंत्र किसने रचा इस पर जरूर विचार किया जा सकता है।

विदेशी हाथ: जिस तरह लोग जागरूक हो रहे हैं और इस गर्मी में भी लोग छाछ या लस्सी की तरफ आकर्षित हुए हैं उस तरह से विदेशी कोल्ड ड्रिंक का धंधा लगभग खत्म सा होता जा रहा हैं। और ऐसे वीडियो से इन विदेशियों के उत्पाद को ही बढ़ावा मिलेगा।

औंछी राजनीति: हाल ही में हमने अनुभव किया है कि कुछ राजनीतिक विरोधी दल सत्ता पक्ष के विरोध में इस कदर उतर जाते हैं कि उनके और देश विरोधियों के सूर एक समान प्रतीत होते हैं। और हमने यह भी देखा कि अपनी राजनीति में कई बार उन्होंने गुजरात के अमूल ब्रांड को भी निशाना बनाया। अमूल को निशाना बनाना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं हैं। विरोधी दल जब सत्ता पक्ष के विरोध करते-करते राष्ट्र विरोधी ताकतों के सात सुर में सुर मिला सकते हैं तो यह तो बहुत छोटी बात हैं।

कारण कुछ भी हो किंतु इस घटना से भी एक बात स्पष्ट हो जाती है कि हम भारतीय लोग स्वयं जहां विदेशी जहरीले उत्पादों पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं वही अपने देश की स्वदेशी उत्पादों पर भरोसा नहीं करते और इन्हें बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। फिर चाहे वह पतंजलि, हो या अमुल।

सोशल मीडिया के इस दौर में अफवाह फैलाना बहुत आसान है लेकिन वही सत्य को फैलाना बहुत ही मुश्किल हो चुका है। ऐसा हम भारतीयों की अपने देश, अपने संतो, अपने कर्मठ नेताओं वह अपने स्वदेशी उत्पादों के प्रति संकुचित मानसिकता के कारण है। जिसका लाभ षड्यंत्रकारी बखूबी उठाते आ रहे हैं। ध्यान रहे इन अफवाहों को साधारण समझने की भूल ना करें यह एक “सूचना युद्ध” (information warfare) हैं। इस युद्ध में हमारी मंदबुद्धि ही षड्यंत्रकारीयों का प्रमुख हथियार हैं, कृपया इसे समझे।

अमुल के इस षड्यंत्रकारी वीडियो का ही उदाहरण लीजिए, इस वीडियो को बनाने वाले अवश्य षड्यंत्रकारी थे किंतु इसे फैलाने वाले आप और हम में से ही लोग हैं। जब तक आप और हम इन विषयों पर सतर्क रहने के लिए आत्ममंथन नहीं करेंगे तब तक इस तरह की युद्ध से हम स्वयं व अपने देश को नहीं बचा सकेंगे।

जागो और जगाओ। देश बचाओ।

वसुंधरा तेरी खेर नहीं … अब देखलो परिणाम!

वसुंधरा तेरी खेर नहीं

राजस्थान के पिछले चुनाव में यह नारा तो काफी चर्चा में रहा और संभवत यही कारण था कांग्रेस की जीत का। इसके परिणाम लगभग 4 साल में हमने कई मौकों पर महसूस किया ऐसा ही और एक मौका हाल ही घटित हुआ।

जयपुर ब्लास्ट के चार आरोपी, जिन्हें हम आतंकवादी भी कह सकते हैं, निचली अदालत ने इन्हें फांसी की सजा दी थी लेकिन अब हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया।

गौर करने वाली बात यह है कि इन्हें रिहा करते हुए हाईकोर्ट के जजों ने जो बात कही वह राजस्थान एटीएस के लिए ऐतिहासिक शर्म की बात रही।

अपने फैसले में जजों ने कहा की राजस्थान की एटीएस को जांच करना नहीं आता यहां तक की उन्हें जांच करने के नियम तक नहीं पता और भी बहुत कुछ कहा और साथ ही एटीएस डीआईजी को जांच अधिकारियों पर लापरवाही से जांच करने के आरोप में दंडित करने का आदेश दिया।

तो इसका अर्थ क्या निकाला जाए या तो एटीएस को वाकई जांच करना नहीं आता जोकि संभव नहीं तो दूसरा अर्थ यही हुआ ना की राजस्थान एटीएस आतंकवादियों को बचाने में लगी थी

निचली अदालत ने बिना किसी सबूत के इन्हें फांसी की सजा तो नहीं दी होगी। यदि वह सारे सबूत हाईकोर्ट को उपलब्ध कराए जाते तो हो सकता है सजा कम होती पर कुछ तो होती।

तो यहां राजस्थान एटीएस एक बलि का बकरा जरूर बनी किंतु एटीएस को ना काम न करने देने वाली राजस्थान सरकार क्या अपने आप को बचा पाएगी। आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति व उन पर उदारता का आचरण कांग्रेस के चरित्र में हमेशा झलकता रहा है। देश में जगह-जगह आतंकी हमलों का वो २०१४ के पुर्व का माहौल भुला नहीं जा सकता। और वही आचरण को कांग्रेस की राजस्थान सरकार ने एक बार पुनः सिद्ध किया।

तो अब आतंकवादियों की जमात को तो पता ही है कि उन्हें किस सरकार से लाभ मिलता है लेकिन राजस्थान की आम जनता को इस पर गहरा चिंतन करने की आवश्यकता है कि उन्हें कौन सुरक्षित रख सकता हैं।

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हिंदू विरोधी छवि से अरविंद केजरीवाल का लाभ

क्या गुजरात में हिंदू विरोधी या मोदी विरोधी टैग वास्तव में @ArvindKejriwal को प्रभावित करेगा? ️

मेरा विश्वास करें, बिल्कुल नहीं!

नहीं तो वह हजारों बार नाक को जमीन पर घसीट कर माफी मांग लेता…. वास्तव में, उसे अभी भी लाभ होगा।

कैसे? उसे केवल इसलिए लाभ होगा, क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है।

अब फायदा हो रहा है तो क्या बीजेपी हार रही है? ️

नहीं, AAP को लाभ कांग्रेस के वोट बटोरने से है।

किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है कि कांग्रेस कुछ खो रही है, बल्कि यह रणनीतिक रूप से खुद को AAP से बदल रही है।

हां! जबकि मोदी ने आज के राजनीतिक इतिहास में अपने नेतृत्व से साबित किया है… एक और इतिहास राजनीतिक माफिया द्वारा एक पुराने राजनीतिक दल, यानी की कांग्रेस, को नवजन्मे दल AAP से बदल कर।

कांग्रेस ने इससे पहले दिल्ली में और दूसरी बार पंजाब में इस लक्ष्य को पहले से ही हासिल किया है। अब गुजरात इसका तीसरा प्रयोग है।

हां, AAP गुजरात में जीतने के लिए नहीं लड़ रही है… लेकिन यह कांग्रेस के स्थान पर अपने आपको खड़ा करने के लिए लड़ रही है और निश्चित रूप से वह गुजरात में अगली भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्ष का स्थान हासिल भी करेंगे। तब AAP इस परिणाम को 2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ जीरो से हीरो के रूप में प्ब करेगी। और यही वजह है कि गुजरात चुनाव से कांग्रेस पूरी तरह नदारद है।

यह एक सुनियोजित खेल है… जहां भाजपा नेता AAP को तत्काल प्रतिस्पर्धी अपने ही बयानों से बनाने को मजबुर कर दिए गए हैं।

क्या “लम्पी” बीमारी के भय से दूध कुछ दिन न पिने का सन्देश आप को भी मिला?

क्या “लम्पी” बीमारी के भय से दूध कुछ दिन न पिने का सन्देश आप को भी मिला?

सरकार ने स्पष्ट किया हैं व डाक्टरों ने भी कहा हैं की किसी भी बिमारी से ग्रसित बीमार गाय का दूध उबाल लेने के पश्चात् पिने योग ही रहता हैं अतः: इस तरह भ्रमित करने वाले सन्देश कृपया न ध्यान दे और ना पोस्ट करे।

इस तरह के पोस्ट से अनजाने में हम गाय के प्रति भय बढ़ा रहे हैं जिससे गौ पालने वालों की समस्या बढ़ेगी व इस महामारी में गाय पालन कठिन हो जाएगा क्यूंकि दूध बिकना बंद होगा तो उनके आर्थिक स्थिति और कमजोर होगी।

यदि आप ने ऐसे सन्देश देखे है अथवा प्रसारित किया हैं तो कृपया त्वरित “दूध न पिने का” सन्देश जहां से आया अथवा अपने जहाँ तक भेजा, वहां तक इस सन्देश को पुंचाये और गौमाता की सेवा करे।

धन्यवाद, जय गौ-माता