Monthly Archives: January 2016

तोडने की साजीश

जरा सोचिये…

अखलाक (दादरी) के बहाने …!
हमें साम्प्रदायिक बनाया

रोहित (हेदराबाद) के बहाने ….!
हमें जातिवादी बताया

अब तृप्ती देसाई (शनि शिगणांपुर) के बहाने ..
हमें स्त्रीयों पर पाबंदी लगाने वाला
पुरूष प्रधान समाज साबीत किया जा रहा है…

चारों तरफ से घेरा जा रहा है..
हमें टुकडों में तोडा जा रहा हैं…
उकसाया जा रहा हैं ताकी हम अपनी सहनशीलता
को त्याग हिंसा पर उतर आये…

और यदी किसी ने उकसावे में प्रतीकार कर दिया तो फिर उससे प्रमाणीत किया जायेगा की भारत “असहनशील” हो गया हैं!!!

समजो इन विदेशी हाथो कि कठपुतली, इन सेक्युलर मक्कारो और मिडीयाई गद्दारों द्वारा फैलाई जा रही साजीशो को…

इस देश कि अखंडता तब तक सुरक्षीत नहीं जब तक देश का हिंदु जागृत व एकझुट नहीं!!!

विशेष:
” हिंदु ” कोई धर्म नहीं बल्की भारतीय जीवन शैली का नाम हैं| इस देश की मिट्टी में जन्मा हर शक्स जो भारतीय मिट्टी में पनपे विभीन्न धर्मों का अनुयायी हो अथया मानता हो कि उसके पुर्वज उनसे जुडे हुवे थे या वह जो भारतीय संस्कृती व सभ्यता से जुड कर खुद को भाग्यशाली मानता हो, वह एक “हिंदु” ही हैं|

हिंदु = जेन + सिख + बोद्ध + सनातन
(सभी धर्म जो देश कि ही मिट्टी में पनपे)

|| जागो और जगाऔ, देश बचाऔ ||

……..जन-जन को इसे भेजो…….

हिंदु विरोधी मिडीया का ताजा वार | शनि शिगणांपुर विवाद

आज कल बीकाऊ मिडीया शनि शिगणांपुर में स्त्रीयों के प्रवेश को लेकर बडी-बडी बहसो पर उतर आया हैं| यह वही भाडे के टट्टुवे पत्रकार हैं जो हिंदु-विरोधी रायता फैलाने की सुपारी उठा रखे हैं|

इन्हे मुद्दा नहीं भी मिले तो ये मुद्दा पैदा करने में माहीर हैं| तृप्ती देसाई नाम की महीला जिसने शनीशिंगापुर में महिलाऔ के प्रवेश पर हंगामा मचा रखा हैं वह पहले अन्ना और कांग्रेसी मंत्रीयों के साथ कई बार नजर आ चुकी हैं| जाहीर हैं, यह मुद्दा सुनीयोजीत तरीके से बनाया गया हैं| वास्तव में इस मुद्दे का धरातल हैं ही नहीं क्युँ की धार्मीक महीला स्वयं से ही शनीदेवता के दुर से ही दर्शन करेगी किंतु चंडाल चौकडी जिन्हे केवल बहस खडी करनी हैं वे किसी भी हद तक जा सकते हैं| तृप्ती देसाई – इस चंडाल चौकडी का तरोताजा उदाहरण हैं|

पहले भी मंदीरो में लडकीयों के जिन्स ना पहनने वाले जैसे बयानों के विरोध में हमारी मिडीया चेनलों की लम्बी-लम्बी बहसे तो जरूर ही सुनी होगी| इनबहसों में बयान देने वाले को संकुचीत सोच वाला व महीलाऔ के प्रती अव्यवहारी सोच वाला बताने कि हर पत्रकार कि होड सी लग जाती हैं| क्या किसी पत्रकार ने इस पहलु से इस पर बहस करने कि कोशिश कभी की हैं कि मंदिर में शालीनता व सादगी बनाये रखने कि दृष्टी से सही भी हो सकता हैं!!!

अब कुछ ही समय पहले कि इस खबर पर भी गौर किजीये….

मुंबई शहर कि विख्यात दरगाह हजीहली में वहाँ के ठेकेदारों ने स्त्रीयों के प्रवेश पर पुरी तरह से रोक लगा रखी हैं| इस खबर पर हमारे मिडीयाँ जगत को अब तक साँप सुँघा हैं|

इतना सन्नाटा पसरा हैं कि अभी तक मुंबई के लोग भी इस खबर से पुरी तरह वाकिफ ना हो सके हैं| कई मुस्लीम जोडे दरगाह तक साथ जाकर पुरूष वर्ग स्त्री को वहीं अकेले छोड कर अंदर जाना पड रहा हैं| किसी पत्रकार में हिम्मत हि नहीं हो सकी के वे इस मुद्दे पर बहस कर सके|

इनके समुदाय में इन कट्टर पंथीयों द्वारा जबरन थोपी गई बुर्का प्रथा पर पहले ही मिडीया जगत ने मोन धारण कर रखा था और स्त्रीयों के प्रती किये गये इस अव्यवहारीक प्रतीबंध पर भी ये पुरी तरह खामोश हैं|

एसे सेकडो उदाहरण भरे पडे हैं जब विदेशी पैसा पर पलने वाला मिडीया हिंदु धर्म के विरोध में खुलकर भौकता हैं लेकिन जब विदेशी धर्मो की बात आती हैं तो चुप्पी साध लेता हैं…

उदाहरणतया…
— साधु-संतो पर लगे आरोपों पर हफ्तो बहस करना किंतु विदेशी धर्मगुरूऔ के अपराधो पर खामोशी
— संतो के बयानो को ‘विवादीक’ बताना और विदेशी धर्मगुरूऔ के फरमानो व फतवों पर मौन
— हिंदु धर्म की विज्ञान प्रमाणीत मान्यताऔ को भी अंधविश्वास कि श्रेणी में खडा कर देना किंतु विदेशी धर्मो के निराधार व अंधविश्वासी प्रचलन को नजर अंदाज करना

|| जागो हिंदु, जागो ||

हैदराबाद : “आत्महत्या” कि सियासत और दलीत कार्ड

हैदराबाद : “आत्महत्या” कि सियासत

जानीये हकिकत:

* हेदराबाद युनीवरसीटी में दो विद्यार्थी समुह ABVP व ASA (Ambedkar Student Association) में तनाव पहले से चल रहा था
* विवाद का कारण ASA के सदस्यो द्वारा फैलाये जा रहे राष्ट्र विरोधी विचार थे
* रोहीत वामुले, जीसने आत्महत्या की वह भी ASA का ही सदस्य था
* ASA के विद्यार्थीयों ने “गौमांस की पार्टी” व “आतंकी याकुब मेनन” की फाँसी का विरोध – जैसे प्रदर्शनों में बढ-चढ कर हिस्सा लिया था जिसका ABVP ने जम कर विरोध किया
* रोहीत वामुले का एक विडीयो भी सामने आया हैं जिसमें वह साफ कहते नजर आ रहा हैं कि उसे हिंदु, हिंदुत्व व संघ के भगवा रंग से सख्त नफरत हैं
* ABVP के इस विरोध से खिसीयाए ASA के कुछ लोगों ने ABVP के एक विद्यार्थी पर जान लेवा हमला किया था
* ASA कि बढती गुंडागर्दी पर जब वहाँ के MLA ने आवाज उठाई तब युनीवर्सीटी के कुलपती ने एक जाँच समीती से जाँच करवाई
* जिसके बाद ASA के गुडों जैसी हरकत करने वाले छात्रों को कुछ समय के लिये युनीवर्सीटी के केंपस में घुसने की पाबंदी लगा दी थी
* ना तो ASA के इन छात्रो पर कोई कानुनी कार्यवाही की गई थी और ना ही इन्हे पढाई से रोका गया था
* रोहीत वामुले इनमे से ही एक था जिसने आत्महत्या कर लीया
* रोहीत ने अपने पत्र में मौत का कोई स्पष्ट कारण नहीं लीखा और इसके लिये ना ही अपने दोस्तो व ना ही अपने विरोधीयो को जिम्मेदार बनाने की अपील की
* पत्र में एक और मुख्य संदेश था जिसमें उसने ASA, जिससे वह जुडा था, उससे माफी मांगी और यह भी बताने कि कोशीश कि की – हमारे अपनो में कुछ गलत लोगों शामील हो चुके हैं

जीस तरह बीकाऊ मिडीया व सेक्युलर छाप नेता इस मुद्दे पर “दलीत” नाम का ठप्पा लगाने पर उतारू हुवे हैं तो यह भी जानना जरूरी हैं की…
– जहाँ मरने वाला दलीत वर्ग का था तो उन्होने जीस विद्यार्थी पर हमला किया वह भी एक दलीत ही था
– युनीवर्सीटी की जिस जाँच समीती ने इनके द्वारा किये गये हमले की जाँच की व इन्हे दोषी पाया उसमें भी दलीत सदस्य थे

इस मुद्दे कि असली वजह यदी मृतक के अंतीम पत्र से खोजने की कोशिश कि जाये तो आत्महत्या का कारण उसकी नीजी जिंदगी से हैं| मृतक ने अपील भी कि थी की उसकी मौत को आम दुनीया से ना जोडा जाये इस आधार पर भी मचा सियासी बवाल पुरी तरह से मृतक की आत्मा को अशांत ही करेगा|

“दादरी” कांड के बाद सोये हुवे सारे सेक्युलर छाप नेता अब अचानक से “दलीत” के नाम पर विद्यार्थी कि आत्महत्या पर जाग उठे हैं| इन्हे दादरी व हेदराबाद की घटना के बीच दो अन्य घटना मालदा और पुनीया से कुछ लेना देना नहीं था क्योंकी यह दो घटना ना मुस्लीम और ना ही दलीत वोट बँक को प्रभावीत करती थी|

विशेष:

विदेशी ताकतों ने कुछ लोगों को मायाजाल में फँसाकर एसे NGO खडे करवाये हैं जो माननीय डा. भीमराव आंबेडकर के नाम का इस्तेमाल करते हैं और “दलीत” वर्ग को उनके उत्थान का जाँसा देकर दलीत वर्ग में “हिंदु” विरोधी मानसीकता को बढावा देते हैं| एसे संघठनो द्वारा गौमांस का समर्थन व याकुब जैसे आतंकी की फाँसी का विरोध जिता जागता प्रमाण हैं| दलीत वर्ग के लोगों को एसी साजीशों से सतर्क रहने की जरूरत हैं|

|| वंदेमातरम् ||

बाजीराव “मस्तानी” नहीं पेशवा ही रहेंगे

“बाजीराव पेशवा” कि पहचान बना दी “मस्तानी” !!!

विदेशी हाथो कि कठपुतीयों जैसे फिल्म निर्माता आज हमे चुन-चुन कर हमारे गौरवशाली इतिहास से एसे फर्जी किस्सो को तोड-मरोड कर दिखाना चाहते हैं जिसमें हिंदु-समाज कि कट्टरता को उभारकर बताया जा सके जैसा कि “बाजीराव-मस्तानी”, “जोधा-अकबर” में दिखाया गया जिसे देख कर आज का आम भारतीय फिर अपनी संस्कृती के रक्षक पुर्वकालीन समाज को कोसने लग जाये और सोचने लगे कि धर्म के नाम पर एसा भेदभाव क्युँ हुवा!!! आज का आम भारतीय, जिसे वास्तवीक इतिहास का कोई ज्ञान ही नहीं हैं और जिसने स्कुली इतिहास भी मेकाली शिक्षा का पढा हैं, सहजता से इसे स्वीकार भी कर लेगा|

– वो नहीं जानता कि हकिकत में बाजीराव ने धर्म व मात्रभुमी कि रक्षा में किसी-किस तरह के शोर्य व बलिदान को उभारा लेकिन आज एसी फिल्म देखकर यह जरूर मानने लग जायेगा की बाजीराव के प्राण मस्तानी के नाम पर गये!!!
– वो यह नहीं जानता कि अकबर एक क्रुर मानसीकता वाला साशक था व किस तरह से भारत भुमी पर उसने आतंक मचाया था लेकिन फिल्म में दिखायी गई झुठी प्रेम कथा के आगे स्वयं के स्वाभीमान की अर्थी सजालेगा!!!

यह एक मुलभुत तथ्य हैं की गुलामी काल के पहले का भारतीय समाज कट्टरता जैसे शब्द से बिलकुल ही अनजान था| ना ही उसने उस दरीदंगी व वहेशीपन कि कभी कल्पना भी कि थी जैसी मुगलो द्वारा फैलायी हमारी पवान धरा पर फैलायी और ना ही आपसी कोई द्वेष थे जिनके तले कोई भी वर्ग स्वयं को पीडीत कह सके लेकिन आज भारतीय समाज के प्रती हिनभावना से भरे ये फिल्मकार एसे भारत को न जानना चाहते हैं और ना ही बताना चाहते हैं| भारतीय संस्कृती पर सवाल उठाने वाले ये फिल्मकार उन बर्बरता व दरिंदगी भरे किस्सो को कभी नहीं उठाते जिसने हमारे समाज को कट्टर बनने पर मजबुर किया था, वे उन किस्सो को मुद्दा नहीं बनाते जिसने हमारे सभ्य समाज में फुट-डालो और राज करो के तहत द्वेश फैलाये…

— वे कभी नहीं दिखायें कि किस तरह मुगल साशक सिर्फ युद्ध नहीं किया करते थे बल्की जहाँ से गुजरे वहाँ के पुरष वर्ग का खात्मा कर गाँवों कि स्त्रीयो को किस दरींदगी से लुट कर जील्लत भरी जींदगी देते थे
— वे कभी नहीं बताना चाहेंगे कि उनकी दरींदगी के आतंक से बचने के लिये स्त्रीयों ने भी हथीयार उठा लिये थे, स्त्रीयाँ स्वयं आग में कुदकर जौहर करलिया करती थी व हमारे असहाय समाज ने बालिका हत्या, सती जैसे चलन को मजबुरी में अपनाना शुरू करदिया था!
— वे यह कभी नहीं बतायेंगे कि भारत पर वे अपने धर्म का परचम लहराने के लिये किस तरह जबरन लोगों इस्लाम कबुल करवाया करते थे यहाँ की प्राचीन धरोहरो को तहस-नहस कर मस्जीदे खडी कर दी थी
— वे यह भी नहीं बता पायेंगे कि किस तरह इन विदेशी साशकों ने हमारी समाज, प्रकृती, प्राणी यहाँ तक की कण-कण को पुजने वाली भारती मानसीकता में किस तरह कट्टरता भर दी लेकिन गुलामी काल के बाद उभरी इस कट्टरता को लेकर वह माहोल अवश्य बनाना चाहते हैं जिससे आज का युवा अपनी संस्कृती पर हेय दृष्टीकोण अवश्य धारण करले|

यदी वे गुलामी काल से गुजरे समाज के दर्द भरे किस्सो को बताने लगेंगे तो आज का सोया आम भारतीय जागृत होकर अपनी आजादी का मुल्य पहचान लेगा, स्वाभीमानी व सतर्क हो कर अपना राष्ट्रहीत कि दिशा चल पडेगा| जाहीर हैं कि इन फिल्म नीर्माताऔ को इससे ज्यादा दिलचस्पी विदेशो से मिलने वाले मोटे फंड पर हैं और एसा करना इनके विदेशी आकाऔ को कतई मंजुर भी नहीं होगा|

फिल्म निर्माता के लिबास में छुपे इन गद्दारों सहीत किसी को भी यदी भारतीय समाज का कट्टरपन ही दिखाई देता हैं तो यह कहुँगा की गर्व हैं मुझे मेरे भारतीय समाज की कट्टरता पर| यदी इस समाज ने अपने बीते हुवे दरीदंगी भरे काल में अपनी सभ्यता के प्रती कट्टरता ना अपनाई होती तो आज हिंदुस्तान भी कब का मुगलीस्तान बना दिया गया होता और भविष्य में भी यदी भारतीय समाज ने गलती से भी कभी अपने स्वाभीमान के प्रती कट्टरता भुला दी तो मुगलीस्तान बनने से नहीं बच सकेगा|

विशेष नोट: भारतीय चेनल व बालीवुड द्वारा भारती समाज में द्वेष फैलाने व हमारी सांस्कृतीक विशेषता को मिटाने के लिये में भारी विदेशी निवेष लगा हुवा हैं

# बहिष्कार करे एसे फिल्मकारो का जो हमारी संस्कृती को बदनाम करे #

|| वंदेमातरम् ||

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दादरी v/s मालदा (कविता) 

#### दादरी v/s मालदा #####

एक तरफ “दादरी”, एक तरफ “मालदा”
एक में सिर्फ सेकडो थे तो एक में जमा हुवे थे लाखों
एक भडकाया गया था, एक “खुद-ब-खुद” भडक गया

एक में जो हत्या हुई थी वह था निर्दोष
एक में पीडीतो का ही नीकाला गया दोष

एक में मानवता हो गई थी शर्मशार
एक में धार्मीक भावना बनी आधार

एक में “हिंदुऔ” ने मचाया था कोहराम
एक में “असमाजीक” तत्वो का आया नाम

एक में हिंसक हुवे थे तुरंत बंदी
एक में अब तक खोज रहे हुडदंगी

एक पर मिडीया में ब्रेकिंग पर ब्रेकिंग न्युज
एक पर सारे मिडीया एक साथ फ्युज

एक पर सारे सेक्युलर नेताऔ को खुली मीली थी छुट
एक पर गलती से भी कोई जो पहोंचे…तो मौके कि “लुट”

एक पर देश का सेक्युलरीज्म लग गया था फटना
एक पर यह रह गई बनकर मात्र एक “स्थानीय” घटना

एक पर असहिष्णुता बना दी गई थी राष्ट्रीय आपदा
एक कि खबर अब भी तरस रही बनने को मुद्दा

एक पर पुरी गैंग ने अवार्ड वापसी को बनाया था हथीयार
एक के लिये आवाज उठाने को कोई नहीं हो रहा तयार

एक पर क्या शाहरूख! क्या आमीर!
सबके दिख गये थे “आँसु”
एक पर ये अपनी कला दिखाकर
छिपाते फिर रहे हैं “मुँह”!

एक से अल्पसंख्यक पड गये थे खतरे में
एक पर भला क्यों कोई पडे इस सदमें में

एक में लुटा दिये थे प्रसाशन नें रूपये मात्र ३४ लाख
एक पर अब भी जख्मी तलाश रहे न्याय की साख

कोई यह ना मान बैठे कि जो हुवा वह नसीब था
फर्क तो दोनो में होना बडा ही वाजीब था

एक तरफ देशभर में संगठीत सेक्युलर वोटबँक का सवाल था
और दुसरी तरफ….
आपस में ही लडने वाला,
धर्म को खिलौना समझने वाला,
राजनीती को गंदगी मानने वाला,
खुदगर्ज, नींद में डुबे रहने वालो का हाल था!!!

— दोनो घटना से व्यथीत —
— भविष्य के लिये चिंतीत —
— फिर भी तत्पर, सतर्क और कार्यरत —
— एक हिंदु राष्ट्रवादी —

|| वंदेमातरम् ||

हिंदुकुश : काला इतिहास

### हिंदुकुश ####

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आज तीव्र गती के भुकंप के झटके लगे, अफगानीस्तान का “हिंदुकुश” इलाका बना भुकंप का केंद्र : आज (८ जनवरी १६) की खबर
————-

क्या आपने सुना था कभी यह नाम???

हिंदुकुश : गुगल पर इस इलाके के बारे में छानबीन कजीयेगा, चौक पडेंगे…

अफगान जो आज पुरी तरह मुस्लीम बहुल इलाका बनाया जा चुका हैं उसके बावजुद वहाँ एसे नाम का इलाका सुनने में जरूर अचरज होता हैं, लेकिन इसका इतिहास जानकर दु:ख भी होगा|

जहाँ इस्लामीक कट्टरपंथीयो के जुल्मो ने अन्य धर्मीयों के नामो निशान मिटवा दिये वहीं इस इलाके का नाम आज तक हिंदुऔ से कैसे जुडा रह गया! विचार उठना स्वाभावीक हैं|

अफगान पर मुगल हमले के पुर्व वहाँ भी हिंदु ही रहा करते थे| जब मुगलों ने अपनी दरींदगी का तांडव शुरू किया तब उन्होने इस इलाके को चुना जहाँ वे उन हिंदुऔ को बंदी बनाकर इकट्ठा करते थे जो अपने हिंदु धर्म के सच्चे परायणी होते थे व इस्लाम स्वीकार करने से मना कर देते थे| अफगान का हिंदुकुश इलाका पुरी तरह पहाडीयों व खाडीयों से भरा हुवा हैं| एसे इलाके तक हिंदुऔ को लाने के लिये भी घुडसवार मुगल सेनीक भेड-बकीरीयों कि भाँती इन्हे घेरते हुवे व कोडे बरसाते हुवे लाते थे|

समय-समय पर एसे हिंदुऔ को इकट्ठा कर हिंदुकुश लाया जाता था ताँकी वे इन्हे इस्लाम को नकारने कि सजा दे सके| इसके लिये उन्हे कतार में खडा कर बारी-बारी से आगे लाते| पहले उनकी जनेउ उतार एक और फेकी जाती और फिर पुछा जाता – क्या तुम्हे इस्लाम कबुल हैं? यदी “हाँ” में जवाब मिला तो दुसरी कतार में अन्यथा वहीं सबके सामने उससे गर्दन झुकवा कर जल्लाद द्वारा कटवा दी जाती| इन तरीको से वे मौजुद लौगों में इस तरह का खौफ भरते थे की वे डर कर इस्लाम कबुल करले| कई लोग इस खौफनाक मंजर को देख कर इस्लाम कबुल कर लेते थे| लेकिन इन सब के बावजुद एसे-एसे धर्मात्मा भी होते थे जो अपनी मुंडी कटवाना आसानी से स्वीकार लेते लेकिन धर्म नहीं छोडते थे| इस सामुहीक हत्याकांड से कई बार यहाँ एक और जनेऊ का व दुसरी और कटे सिरो का पहाड तक बन जाया करता था|

हिंदुकुश इलाके के बारे में आप जब नेट पर खोजेंगे तो अन्य जो जानकारीया मिलेगी उनमे एक जानकारी यह भी होगी की हिंदुकुश नाम का मतलब क्या हैं…मुगल कालीन इतीहास के अनुसार इसका मतलब हैं – “हिदुऔ को मारो”|

इस इलाके का नाम अब तक नहीं बदला गया शायद यही कारण होगा कि कट्टरपंथी आज भी इसे हिंदुऔ पर अपनी बादशाही कि नीशानी का गढ मानते होंगे और संभवत: “हिंदुकुश” कि दहशत से ही उस दौरान अफगानीस्तान व बलुचीस्तान जैसे देश पुर्ण रूप से इस्लामीक बनाये जा सके|

हर हिंदु से प्राथना हैं कि जब भी यह नाम आपके समक्ष आये या याद भी आये तो यहाँ बलीदान हुवे अपने हिंदु भाईयों कि आत्मशांती के लिये प्रार्थना अवश्य किजीयेगा साथ ही गर्व किजीयेगा अपने पुरखो पर कि एसी दरींदगी भरे काल के बावजुद अपने धर्म को ना छोडा व आज भी हम एक हिंदु हैं|

वाकई …….  || गर्व से कहो हम हिंदु हैं ||

Social Word War!

|| लोकतंत्र के लिये बने अचुक हथीयार
जब चले मोबाई पर हिंदुत्व की धार ||

# वाट्सअप-फेसबुक से मचाऔ महासंग्राम #

— आज सोशियल मिडीया वाट्सअप व फेसबुक जैसे माध्यमो में  तिव्रगती से फैलते हुवे स्मार्ट फोन के जरीये लगभग सभी वर्ग के आम भारतीयों कि पहोच में आ चुका हैं

— यह भारत जैसे लोकतांत्रीत देश में रह रहे हर भारतीय नागरीक के लिये किसी वरदान से कम नहीं

— सोशियल मिडीया के जोर से देश में विदेशी पैसो पर पल रही भांड मिडीया कि भांडगीरी को मुँहतोड जवाब मिलना शुरू हो चुका हैं

— यही कारण हैं कि बीकाऊ मिडीया आज कई मसलों पर बेअसर साबीत होता जा रहा व जिन खबरों को व अन्यथा दबा दिया करता था वह अब सोशियल मिडीया के कारण उभर कर आने लगी हैं … इसका ताजा उदाहरण हैं मालदा में कट्टरपंथीयो का दंगा जिसे कोई मिडीया बताना नहीं चाहता था लेकिन सोशियल मिडीया के दबाव से सबसे पहले जी-न्युज ने इसे विस्तार से प्रस्तुत किया

— कांग्रेस के एसे ही दबाये हुवे कुकर्मों को सोशियल मिडीया ने ही जन-जन तक पहुँचाया था और तो और वह सोशियल मिडीया ही था जिसने चुनाव से पहले ही नरेंद्र मोदी को देश का प्रधान मंत्री चुन लिया था

— जिस हिंदु के हाथ में आज एक स्मार्ट-फोन हैं वह अपने फोन को हिंदुत्व रक्षा के लिये एक हथीयार की तरह इस्तेमाल कर सकता हैं
— इसके जरीये आप अपने इर्द-गीर्द सोते हुवे व लगभग जिंदा लाश बन चुके हिंदुऔ में प्राण फुक सकते हो

— इस तरह हर जागृत व तत्पर हिंदु यदी कोशिश करे तो हिंदुत्व की क्रांती को जन-जन तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता

— यदी हर हिंदु सेक्युलरता का चौंगा छोड हिंदुत्ववादी का मार्ग अपना ले तो देश को हिंदुराष्ट्र बनाने से कोई रोक नहीं सकता

# आप क्या कर सकते हैं #

— सोशियल मिडीया में हिंदुत्ववादी ग्रुप से जुडे रहे जिससे आप स्वयं को पुरी तरह सजग व सतर्क रख सकते हैं

— स्वयं का एक हिंदुवादी ग्रूप अवश्य बनाये जिसमें अपने ग्रुप में किसी पहले से चल रहे हिंदुवादी सदस्यो को ना जोडते हुवे खुद से जुडे हुवे जैसे – सगे-संबंधी, मित्र व सहकर्मीयों जो सहधर्मी हैं उनको जोडे

— हिंदुत्ववादी ग्रूप से चुनी हुई राष्ट्रवादी व धर्मपरायणी पोस्ट जिसमे  विचार, लेख, हिंदुत्व हित की खबरे, हिंदु हित के राजनेतीक मुद्दे, कटाक्ष को स्वयं के ग्रुप में नीतदीन पोस्ट करते रहे

— आपकी नीतदिन की यह क्रीया आप के ईर्द-गीर्द के लोगो को हिंदुत्व की तरफ जागृत करने में बडा योगदान करेगी जिसमें आप कि भी भुमीका आपके जिवन को संतोषप्रद सिद्ध कर देगी

— यदी प्रत्येक हिंदुत्व वादी मन से इस मुहीम से जुड जाये तो यह बडा बदलाव अपने चरम तक पहुँच सकता हैं

# ध्यान रखने वाली बाते #

— कई हिंदुवादी ग्रूप बनाने से इसलिये भी कतराते हैं कि वे समाज विरोधी पोस्ट से मुसीबत में ना फँसे

— अपने ग्रूप में एसे कंटेंट को ना फैलाये जो आपत्ती जनक हो

— अपने ग्रूप में उन्ही को जोडे जो आपके करीबी या जानेपहचाने हैं या किसी विश्वसनीय द्वारा निवेदीत हो

— अपने ग्रूप में अन्य विश्वसनीय सदस्यों को भी एडमीन बनाये जिससे वे भी उनके विस्वास पात्रों को जोड सके जिससे आपके मेहनत का असर अधीक हो

— इस छोटे से योगदान में आपका कोई विशेष खर्च नहीं लगना हैं व समय भी वही लगेगा जो आप अन्यथा फिजुल के चुटकुले या व गैर हिंदुवादी मनोरंजन के कंटेंट शेयर करने में गुजार देते हैं

— इस कार्य में मन लगाकर आप इस योगदान में भी उतना ही बल्की उससे भी अधीक मनोरंजन प्राप्त कर सकते हैं उससे भी बडी मुल्यवान जो आप अनुभव करेंगे वह हैं हिंदुत्व के लिये योगदान कर प्राप्त हुई आत्मशांती

हमारे पुर्वजो देश व धर्म की रक्षाहेतु हँसते-हँसते बलिदान हो गये जिसके नतीजे में ही आज हम खुली हवा में साँस लेने के काबील हुवे| क्या हम अपने देश व धर्म की रक्षा हेतु इतना भी नहीं कर सकते?

आज ही संकल्प करे और राष्ट्रप्रहरी बन सोशियल मिडीया में हिंदुराष्ट्र के लिये जारी यग्य में अपनी भी आहुती सुनीश्चीत करे

|| धर्म रक्षती रक्षती:||

भारत – पाकिस्तान वार्ता

# मोदी कि लाहोर यात्रा और पठानकोट हमला #

सब कुछ तो वहीं हुवा जो हमेशा से होता आया…

– भारत ने कि दोस्ती की कोशिश
– पाकिस्तान का पीठ में खंजर
– मिडीया का घडीयाली विलाप
– जनता के नाम पर सरकार से सवाल
– और दबाव में भारत-पाक वार्ता पर संकट

तो क्या हुवा जो पीछले दश वर्षो के बाद
— अब सिमा पर भारतीय सेना दहाडती हैं….
— अब सिमा पार कि लगभग हर घुसपैठ पर नकेल कस दी हैं…
— अब ISI के छुपे हुवे एजेंटो कि धरपकड जारी हैं…
— अब ISIS से संबधीत लोगों पर खुफीया तंत्र कि पैनी नजर गढ चुकी हैं…
— अब आतंकीयों की सैकडो साजीशे अंजाम तक पहुँचने के पुर्व ही निरस्त होने लगी हैं….

फिर भी पठानकोट का हमला तो हुवा !!!
जवान तो शहीद हुवे !!!

क्या अब फिर वार्ता विफल होगी !!!
और क्या फिर वार्ता के लिये एक लंबा इंतजार करना होगा?

जब भी वार्ता कि कोशिशे होती हैं एसा ही होता आया हैं..और वार्ता अधुरी ही रहती आ रही….यदी इस वार्ता को रूकवाने के लिये ही एसी हरकते होती हैं तो फिर यह भी हमें मानना ही होगा की आतंकी हमलो से ज्यादा सफल वार्ता विफल करवाने वाले आतंकीयों के मंसुबे अवश्य सफल होते आ रहे हैं|

इस बार भी हमले के बाद वार्ता विफल करवाने के लिये विपक्ष व बिकाऊ मिडीया द्वारा सरकार पर चौतरफा दबाव बनाना शुरू हो चुका हैं….क्या यह आतंकीयों के मंसुबो का साथ देना नहीं हुवा?

इस विषय पर अब परिपक्वता से विचार करने की आवश्यकता हैं.
विशेषत: तब जब देश कि कमान एक राष्ट्रवादी सरकार के हाथों में हैं|

कुछ सवाल यहाँ गौर करने लायक हैं….
भारत आखिर बार-बार वार्ता का मार्ग क्युँ चुनता हैं?
वार्ता से पाकिस्तानी कट्टर पंथी वर्ग इतना डरता क्युँ हैं?
और क्या वार्ता से वाकई कोई समाधान निकल सकता हैं?

* वार्ता में अवरोध खडे करने के पिछे का खेल *

— भारत कि और से सारा दामोदार लोकतंत्र की चुनी हुई सरकार के हाथ में हैं जब कि पाकिस्तान में साशन दो बिंदुऔ पर आधारीत हैं…पहला चुनी हुई सरकार जिसे विश्व से मान्यता प्राप्त हैं व दुसरा सेन्यबल जिसकी हुकुमत तो पुरे देश पर हैं किंतु रूतबा मात्र देश कि सिमाऔ के भीतर तक ही सिमीत हैं…
— भारतीय सरकार वार्ता पाकिस्तान की सरकार से ही करती हैं जिसके दरम्यान किये गये फैसलों को भविष्य में कोई नकार नहीं सकता…
— भारतीय कुटनीती वार्ता को द्वीपक्षीय तरीके से किसी अंजाम तक पहुँचाने को प्राथमीकता देती हैं
— लेकिन यही पाकिस्तानी सेन्यबल को मंजुर नहीं क्युँ की एसी वार्ताऔ में उनकी कोई भुमीका नहीं होती
— इस कारण से ही सेन्यबल जो पाकिस्तान के आतंकी संघठनों को भी संचालीत करता हैं, पुरी ताकत से वार्ता में अवरोध पैदा करने में जुट जाता हैं और इसका ही परिणाम हर वार्ता की कोशिशो के दरमीयान एक बडी आतंकी घटना जिसके पश्चात बीकाऊ मिडीया का विधवा विलाप, सरकार पर दबाव और भारत विरोधी पाकीस्तानी सेन्यबल के मंसुबे कामयाब!
— यह भी गौर करे कि आतंकीयों के इस वार्ता विफल करवाने वाले मंसुबो पर फैसला भी भारत की सरकार को दबाव में लेना पडता हैं!

मुद्दा यह नहीं की पाकिस्तान कितना कटीबद्ध हैं वार्ता के प्रती लेकिन यह भारत के लिये यह एक कुटनीतीक जरूरत हैं कि वार्ता को अंजाम तक पहुँचवा कर एक राष्ट्रहित का फैसला हाँसील कर सके जिसपर दोनो और की चुनीहुई मान्यता प्राप्त सरकारों की मुहर लगी हो|

सार यही हैं कि कुटनीतीक रणनीती पर वार्ता जारी रहनी ही चाहीये जिससे एक स्थाई निष्कर्श निकल सके जैसा कि बंगला देश से एतिहासीक तरीके से भारत ने सिमा विवाद सुलझाया| यह पाकिस्तान से भी संभव हैं और वह पुरी तरह से वार्ता पर ही नीर्भर हैं| लेकिन कई विदेशी शक्तीयाँ भी इसे अंजाम तक पहोचने नहीं देना चाहती जिसके लिये वे पाकिस्तान के सरकारी तंत्र व सेन्यबल को कठपुतली तरह इस्तेमाल करती हैं| पाकिस्तान का सेन्यबल पुरी तरह से इन शक्तीयों द्वारा ही पोषित हैं|

जहाँ तक आतंकी हमलों का प्रश्न हैं तो उसके जवाब में भारत को अपनी सुरक्षा में अत्याधुनीक विकास कर खुद कि सिमा पर किला बंदी करनी ही होगी| यदी भारत स्वयं से मजबुत व सुरक्षीत हो जाये तो भारत में दहशतगर्दी के नाम पर चलने वाला व्यवसायी तंत्र संवयं पाकिस्तान के लिये सपोला सिद्ध हो सकता हैं| साथ ही भारत को भी नियंत्रण रेखा के पार भारत को भी एक अघोषित युद्ध कि रणनीती पर उतरना ही होगा जिससे भारत विरोधी ताकतो का सिमा पार सफाया किया जा सके|

यह धरा विरों से विरान नहीं,
विरगती तो जन-जन का अरमान हैं…
संकल्प भरा हैं सिने में,
बहता लहु तो मिट्टी कि शान हैं….
ना बह सके आँसु अपनी आँखो से
इनमें अब बेहद तक अंगार भरो
ना बच सके कोई गद्दार अब भीतर
उठालो लो शस्त्र और संहार करो…

पठानकोट के शहीदो को शत् शत् नमन

जय हिंद, वंदेमातरम्