क्या सब्जी-दाल ही जिंदगी हैं!!!

क्या सब्जी-दाल ही जिंदगी हैं!!!

कुछ अती बुद्धीमान एक बेनर बेहद ज्यादा शेयर करने में लगे हुवे हैं जिसमे अनाजो के बढे हुवे भाव बता कर जताया गया हैं कि एसे अच्छे दिनो के बजाय उन्हे पिछली सरकार वाले बुरे दिन वापस चाहिये 😱

वाकई कितने अच्छे दिन थे पीछली सरकार के…
— जब एक हि परिवार का राज था और बेटी-दामाद तक Z+ सेक्युरिटी में सरकारी पैसो पर घुमते हुवे किसानो कि सेकडो एकड जमीन हथीयाना नीरंतर जारी था
— जब आये दिन अरबो-खरबो के घोटाले सुनने मे आते थे और उनके मंत्री zero loss के पाठ पढाते थे
— जब गांधी परिवार पुरी सिद्धत से ईसाई धर्म फैलाने में लगा हुवा था और गाँव के गाँव घर्मांतरण कि लपेट में आ रहे थे लेकिन किसी मिडीया की हिम्मत नहीं हो पाती कि वो भौक सके
— जब मुस्लीम वोट बँक व तुष्टीकरण के लिये हिंदु के खिलाफ सेकडो षडयंत्र जैसे लव जिहाद, बंगलादेशी घुसपेठ व मुस्लीम बहुल इलाको से हिंदुऔ का नीकल धडल्ले से चल रहा था लेकिन किसी सरकारी तंत्र कि मजाल नहीं हो पाती कि वे कानुन का डंडा चला सक्
— जब सेकुलरवाद अपने चरम पर था, भारतीय संस्कृती पुरी तरह मिटाये जाने के कगार पर पहुँच चुकि थी और हिंदु आतंकवाद का जुमला मढा जा रहा था यहाँ तक कि “संप्रदाय विरोध” कानुन ला कर हिंदुऔ को दंगाई साबीत करने कि पुरी तयारी कि जा चुकी थी
— जब चीन बार-बार आँखे दिखाकर बेधडक भारतीय सिमा में घुस कर भारती सेना का मजाक उडाता था और बंगलादेश कि सिमायें भारत में जिहादी जनसंख्या के विस्तार में लगी थी
— जब पाकिस्तानी सेनीक सिमा पार से गोलीया चला-चला कर हमारे भारतीय सेनीको और गाँवो को जब चाहे नीशाना बनाते थे और हमारे सेनीको के हाथ सरकारी तंत्र से बांध दिये गये थे यहाँ तक कि जवाने के सिर कि किमत भी मात्र एक फुटबाल बन कर रह गयी
— जब हमारी सेना के शस्त्र भंडार पुरी तरह खाली थे और पाक-चीन निरंतर युद्ध के हालात पैदा कर रहे थे
— जब विकसीत देश भारत के साथ खडा नहीं होना चाहता था और विदेश में रहने वाले भारतीयों भी खुद को पहचानना नहीं चाहते थे
— जब उद्योग-धंधे तबाह हो रहे थे, उत्पादन का घला घौटा जा रहा था और किसानो कि खेती भी उजाडी जा रही थी
— जब खरबो रूपये लुटवा कर भी गंगा मेली थी, देश के ग्रंख – गीता, रामचरीत मानस भुलाये जा रहेथे और गौ-माता मात्र गौ-मांस के रूप में विदेशो को परोसी जा रही थी

बहोत कुछ हैं लिखने को मगर जो इतने में भी ना समज सके उसे तो समजाने कि भी कोई इच्छा नहीं!

इन मंदबुद्धी कि सोच दाल सब्जीयों कि किमतों से ज्यादा चल ही नहीं सकती 👿

इन्हे वाकई में अच्छे और बुरे दिनो कि पहचान ही नहीं…इनको तो जिंदगी सुबह-शाम मात्र खुद के पेट भरने और नीजी सुख में ही गुजरनी हैं…इनके पास विचारों पुरी तरह आकाल नजर आता हैं जिनके तहत “अच्छे दिन” कि परिभाषा मात्र नीजी स्वार्थ में नजर आती हैं  #$$%*%@£¢€

लेकिन कुछ हम जैसे भी हैं जिनके नजर में “अच्छे दिन” का मतलब मात्र देश के सम्मान, स्वाभीमान व अभीमान से जुडा हुवा हैं जो आजादी के बाद से आज तक निरंतर गिरता जा रहा था और आज फिर से उठता नजर आ रहा….जहाँ तक दाल-सब्जी कि किमत  सवाल हैं तो भले ही वे और चार गुना बढ जाये…हैसियत होगी तो खा लेंगे नहीं तो भुखे मरना भी पंसद होगा लेकिन देश के सम्मान पर तो आँच नहीं आयेगी

इन बढती किमतो पर आज एक विश्वास यह भी हैं कि भले ही मंहगाई कितनी भी बढे…इसका कारण बाजार में इनकी कमी हैं ना कि कोई घौटाला!!!

जय माँ भारती,
हम दिन रहे ना रहे चार
तेरा वैभव सदा बना रहे…

|| वंदेमातरम् ||

” जिन्होने एसे बेनर काॅपी-पेस्ट से शेयर किये शायद उन्हे अपनी करतुत पर शर्म आई हो….इस पोस्ट को उनके चहरो पर अवश्य मारे जिन्होने आपको एसे बेनर पहुँचाये “

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