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सीनेमा हैं तो क्या? सवाल स्वाभीमान का!

इस देश में अगर रहना होगा
देश का सम्मान करना होगा

सीनेमा हाल से जिस तरह एक परिवार को सिनेमा हाल से बाहर नीकाला गया वह जाहीर हैं हमारे सेक्युलर वर्ग के लिये सहजता से हजम करना आसान नहीं होगा और वह भी तब जब वह एक “मुस्लीम” परिवार हैं!

कई बुद्धीजीवी इस खबर पर कई प्रकार के विचार रखेंगे लेकिन यह सवाल देश के साथ-साथ उन देशभक्तों के स्वाभीमान से जुडा हैं जिनकी नस्ले आज भी देश कि मिट्टी से शिवाजी, संभाजी व राणा जैसे शुरवीरों के बलीदानी सुगंध को महसुस करती हैं|

जब मुद्दा देश के मान सम्मान से जुडा हो तो जरूरी नहीं कि हर किसी को रणभुमी में सिना तान के खडे होने का सौभाग्य प्राप्त हो वह सिनेमा घर में बैठे गद्दार को भी पहचान कर उनसे अपने व देश के स्वाभीमान कि लडाई लड सकता हैं|

सशक्त नेत्रीत्व से सिमा तो सुरक्षीत होनी हैं किंतु सबसे ज्यादा अगर देश को कहीं से खतरा होता हैं तो वह हैं देश के भीतर पल रहे सँपोलो से जो हर पल इस कोशिश में रहते हैं कि लोगों में इतना भ्रम फैला दिया जाये कि देश का मजबुत नेत्रीत्व ही धराशायी हो जाये|

आज देश के बदलते माहोल ने बडे तौर पर दो वर्ग को उभार दिया हैं जिसमें एक तरफ देशभक्तों का मेला हैं तो दुसरी और तरह-तरह के मुखौटो में छुपे देश के गद्दारो का झुंड हैं जो कभी असहिष्णुता को मुद्दा बना रहा, कभी खुद को डरा हुवा बता रहा तो कभी एक समुदाय विशेष को पिडीत बता रहा|

सिनेमा हाल में जो भी हुवा वह आज जागृत होते एक स्वाभीमानी देश कि झलक हैं जिसका संदेश बीलकुल साफ हैं….

जिसमे देश के लिये सम्मान नहीं
वह सिनेमा घर तो क्या
इस देश में भी रहने लायक नहीं!!!

|| वंदेमातरम् ||